मिलने से घटती हैं दूरियाँ आने-जाने से बढ़ता है प्यार शरमाने से बचती हैं भावनाएँ चलने से बनती है राह जूझना सीखो बेटा! जूझना जूझने से खत्म होती हैं रुकावटें कभी-कभी मेरा माथा सहलाते हुए धीरे से कहती थीं नानी।
हिंदी समय में जितेंद्र श्रीवास्तव की रचनाएँ